Baglamukhi Chalisa PDF

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बगलामुखी या बगला, हिंदू धर्म की महाविद्याओं में से एक हैं। महाविद्याएँ दस तांत्रिक देवियों का समूह हैं। देवी बगलामुखी अपनी गदा से भक्तों के भ्रम, गलतफहमियों और शत्रुओं का नाश करती हैं। “बगला” शब्द “वल्गा” से लिया गया है, जिसका अर्थ है लगाम लगाना या नियंत्रित करना। यह शब्द “वागला” और फिर “बगला” बन गया।

देवी बगलामुखी के 108 नाम हैं, और कुछ स्थानों पर उन्हें 1,108 नामों से भी पुकारा जाता है। उत्तर भारत में उन्हें पीतांबरी कहा जाता है, क्योंकि वे पीले या सुनहरे रंग की देवी हैं। वे एक सुनहरे सिंहासन पर विराजमान होती हैं, जिसे कीमती रत्नों से सजाया गया है। उनकी तीन आंखें हैं, जो यह संकेत देती हैं कि वे अपने भक्तों को परम ज्ञान प्रदान करने में सक्षम हैं।

बगलामुखी देवी दस महाविद्याओं में से एक हैं और स्त्री शक्ति तथा आदिशक्ति का प्रतीक हैं।

देवी बगलामुखी के प्रमुख मंदिरों में श्री बगलामुखी शक्ति पीठम (शिवमपेट, नारसापुर, तेलंगाना), बगलामुखी मंदिर (दतिया, मध्य प्रदेश), बुगिलाधार (घुट्टू, उत्तराखंड), कामाख्या मंदिर (गुवाहाटी, असम), बगलामुखी मंदिर (ललितपुर, नेपाल), और बगंडी (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) शामिल हैं।

श्री बगलामुखी चालीसा

।। दोहा।।
सिर नवाई बगलामुखी, लिखूँ चालीसा आज।
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ।।

।। चौपाई।।
जय जय जय श्री बगला माता। आदिशक्ति सब जग की त्राता ।।
बगला सम तब आनन माता। एहि ते भयउ नाम विख्याता ।।

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । अस्तुति करहिं देव नर-नारी ।।
पीतवसन तन पर तव राजै। हाथहिं मुदगर गदा विराजै । ।

तीन नयन गल चम्पक माला। अमित तेज प्रकटत है भाला ।।
रत्न जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरख सकल जन मोहै ।।

आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ।।
पीताभूषण पीतहिं चन्दन। सुर नरं नाग करत सब वन्दन ।।

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै। वेद पुराण संत अस भाखै।
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा। जाके किये होत दुख नाशा ।।

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै।।
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ।।

माल्य हरिद्रा अरू फल पाना । सबहिं चढ़इ धेरै उर ध्याना ।।
धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम सहित तब करै आरती ।।

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे। पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ।।
मातु भगति तब तब सुख खानी। करहुं कृपा मोपर जनजानी ।।

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ।।
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं। अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ।।

पूजनांत में हवन करावै। सो नर मनवांछित फल पावै ।।
सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सराचर होई ।।

तिल तण्डुल संघ क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै।।
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख सम्पत्ति सब होई ।।

फूल अशोक हवन जो करई। ताके गृह सुख सम्पत्ति भरई ।।
फल सेमर का होम करीजै। निश्चय वाको रिपु सब छीजै ।।

गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ।।
गुग्गुल तिल संग होम करावै। ताको सकल बंध कट जावै।।

बीजाक्षर का पाठ जो करहीं। बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ।।
एक मास निशि जो कर जापा। तेहि कर मिटत सकल संतापा ।।

घर की शुद्धि भूमि जहं होई। साधक जाप करै तहं सोई ।।
सोइ इच्छित फल निश्चय पावै। यामे नहिं कछु संशय लावै ।।

अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ।।
दस सहस्त्र जप करै जो कोई। सकल काज तेहि कर सिधि होई।।

जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयश विस्तारा ।।
जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ।।

सप्तरात्रि जो जापहिं नामा। वाको पूरन हो सब कामा ।।
नव दिन जाप करे जो कोई। व्याधि रहित ताकर तन होई ।।

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी। पावै पुत्रादिक फल चारी ।।
प्रातः सायं अरु मध्याना । धरे ध्यान होवे कल्याना ।।

कहं लगि महिमा कहौं तिहारी। नाम सदा शुभ मंगलकारी ।।
पाठ करै जो नित्य चालीसा। तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ।।

।।दोहा।।
सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम।
हरिद्वार मण्डल बसूं, धाम हरिपुर ग्राम ।।
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की श्रावण शुक्ला मास।
चालीसा रचना कियौ, तब चरणन को दास ।।

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